आकाशदीप कहानी की तात्त्विक समीक्षा – जयशंकर प्रसाद

आज के आर्टिकल में हम जयशंकर प्रसाद की आकाशदीप कहानी की तात्त्विक समीक्षा (Akashdeep Kahani ki Samiksha) पढेंगे ,यह कहानी काफी चर्चित रही थी।

आकाशदीप कहानी की तात्त्विक समीक्षा

’आकाशदीप’ कहानी माया ममता और स्नेह-सेवा की देवी चम्पा की मार्मिक व्यथा-कथा है। भाव-प्रवण छायावादी कवि प्रसाद की इस कहानी में चम्पा के पावन चरित्र का मनोहर चित्रण है। कथा का विकास तीव्र गति से हुआ है। कौतूहल और रोचकता से परिपूर्ण सहज भाव से गतिशील होती हुई यह कहानी अन्त में हमारे हृदय को बेध जाती है। नाटककार प्रसाद के अद्भूत संवाद सौष्ठव से परिपूर्ण इस कहानी में काव्यात्मक माधुर्य है, प्रकृति के मनोरम दृश्य है, भाषा-लालित्य है और एक मोहक सम्प्रेषणीयता है। कुल मिलाकर यह कहानी प्रसादजी की कहानी-कला का उत्कृष्ट निदर्शन है।

आकाशदीप कहानी की तात्त्विक समीक्षा

कहानी की समीक्षा उसके तत्त्वों के आधार पर की जाती है। इन्हीं के आधार पर कहानी की विशेषताएँ भी उजागर हो जाती है। कहानी के छ: प्रमुख तत्त्व माने गये है- कथानक, पात्र या चरित्र-चित्रण, संवाद या कथोपकथन, देशकाल और वातावरण, उद्देश्य तथा भाषा-शैली। प्रसाद कृत ’आकाशदीप’ कहानी की परीक्षा इन्हीं तत्वों के आधार पर की जाती है।

आकाशदीप कहानी की कथावस्तु-

’आकाशदीप’ एक बन्दीगृह में आलिंगनबद्ध हो जाने वाले दो प्रवासी भारतीयों की कहानी है। ये दो प्रवासी भारतीय बुद्धगुप्त और चम्पा है। चम्पा का पिता जलदस्यु बुद्धगुप्त के साथियों से संघर्ष करता हुआ मारा जाता है। चम्पा के पिता वणिक मणिभद्र के यहाँ प्रहरी का काम करते थे। पिता की मृत्यु के पश्चात् मणिभद्र ने चम्पा को अपनी बनाना चाहा और उसके मना करने पर उसे बन्दी बना लिया गया। बुद्धगुप्त भी बन्दी था पर चम्पा की सहायता से उसे मुक्ति मिल गयी। दोनों ने मिलकर नाव के नाविकों और प्रहरियों को नष्ट कर नाव पर अधिकार कर लिया और नाविक को अपने अनुसार चलने को बाध्य किया। नाव चलकर एक नये द्वीप पर जा पहुँची जिसका नाम चम्पाद्वीप रखा गया।

बुद्धगुप्त ने अपने परिश्रम, पुरुषार्थ से बाली, जावा और चम्पा द्वीपों की व्यवस्था की तथा चम्पा इन द्वीपों की रानी हो गयी। बुद्धगुप्त चम्पा को अपनी हृदयेश्वरी मानता था पर चम्पा उसे पृथक ही रहना चाहती थी। वह उसे अपने पिता का हत्यारा समझती थी। चम्पा के हृदय में प्रेम और घृणा दोनों भाव उमङ-घुमङ रहे थे। बुद्धगुप्त उसे बताता है कि उसके पिता उसके शस्त्र-प्रहार से नहीं मरे थे। वे तो एक दूसरे दस्यु के शस्त्र से मरे थे। परन्तु चम्पा अपने प्यार को दबाकर, विवाह के प्रस्ताव को अस्वीकार कर देती है। वह तो विवाह न करने का व्रत पहले ही ले चुकी थी। बुद्धगुप्त एक निराश प्रेमी बना चम्पा से आज्ञा लेकर स्वदेश लौटता है।

चम्पा वहाँ रहकर अश्रुपूर्ण नेत्रों से उसे जाते हुए निहारती रहती है। वह द्वीप पर आजीवन एक स्तम्भ पर दीप जलाती रहती है। एक दिन काल के कठोर हाथ उसे भी अपनी चंचलता से गिरा देते है।
किसी भी अच्छे कथानक में रोचकता, सुसंगठन और जिज्ञासा आदि गुण होने चाहिए। ये गुण ’आकाशदीप’ कहानी के कथानक में आद्यन्त व्याप्त है। जिज्ञासा आरम्भ से ही स्थान ग्रहण कर लेती है। दोनों प्रवासी भारतीय आकस्मिक रूप से मिलते है। बुद्धगुप्त को पता चलता है कि दूसरा साथी एक स्त्री है। इससे कथानक में रोचकता भी बनी रहती है। कथावस्तु संगठित भी है, इसमें प्रारम्भ, विकास, चरम अवस्था और अवसान का क्रमिक संयोजन है। प्रेम, आदर्श, व्रत, त्याग और मानव-हृदय के स्वाभाविक गुणों का सुन्दर सामंजस्य कथाकार ने इस कहानी में प्रस्तुत किया है।

आकाशदीप कहानी के पात्र एवं चरित्र-चित्रण-

किसी भी सुन्दर कहानी में पात्रों की संख्या अधिक नहीं होनी चाहिए तथा संक्षेप में ही उनके चरित्र की विशेषताओं का उद्घाटन हो जाना चाहिए। आलोच्य कहानी में चम्पा और बुद्धगुप्त दो ही प्रमुख पात्र है। पोतनायक और जया दो गौण पात्र है। बुद्धगुप्त चम्पा को नवीन द्वीप पर पहुँचाने तक साथ रहता है और जया चम्पा की सहचरी के रूप में रहती है पर वह कहानी के मध्य में रहती है। चम्पा के चरित्र में निर्भीकता, स्वतन्त्र प्रेम, पैतृकता पर गर्व, प्रेम की पुलक, दृढ़ निश्चय आदि गुण है जो सहज ही स्पष्ट हो जाते है। वह जाह्नवी के तट पर उपस्थित चम्पा नगरी की क्षत्रिय बालिका है और माता का देहावसान हो जाने पर अपने पिता के साथ नाव पर हर समय रहती है और सामुद्रिक यात्राएँ करती है।

बुद्धगुप्त ताम्रलिप्ति का एक क्षत्रिय है जो परिस्थितियों के कारण जलदस्यु बन गया है। उसके चरित्र में हमें वीरता, पुरुषार्थ, स्वभाव की कठोरता, सच्चे प्रेम की भावना, कोमलता का समावेश, वियोग को स्वीकार करने की क्षमता आदि गुण मिलते है। यद्यपि वह चम्पा केा अपनी जीवन-संगिनी बनाना चाहता है पर उसकी विवशता को देखकर वह वियोग की धरोहर लेकर स्वदेश लौट जाता है। इस प्रकार आलोच्य कहानी में पात्रों की संख्या सीमित है तथा पात्रों का चरित्र-चित्रण भी स्वाभाविक, सजीव और हृदयस्पर्शी है।

आकाशदीप कहानी के संवाद या कथोपकथन-

संवादों के गुणों का विवेचन करने पर यह ज्ञात होता है कि संवाद संक्षिप्त, सरल, सजीव, स्वाभाविक और तीक्ष्ण व पात्रानुकूल होने चाहिए। संवादों में तीन गुण और बताये जाते है कि वे (1) चरित्राभिव्यंजन में सहायक हों, (2) कथा को गति प्रदान करने वाले हों और (3) वातावरण की सृष्टि करने वाले होने चाहिए। आकाशदीप कहानी में इनमें से अधिकांश गुण मिल जाते है। प्रसाद एक कवि के साथ-साथ उच्चकोटि के नाटककार भी थे।

अतः नाटकीयता का स्पष्ट प्रभाव कहानी पर है। उन्हें ऐतिहासिकता प्रिय थी, अतः इतिहास का भी प्रभाव कहानी पर है। कहानी का प्रारम्भ ही कथोपकथन से होता है। कथोपकथनों में उपर्युक्त सभी गुण प्रायः विद्यमान है। उदाहरणार्थ-

चरित्राभिव्यंजक संवाद-

बुद्धगुप्त की स्वतंत्र-प्रियता, सूझ-बूझ, निर्भीकता और वीरता इन संवादों में द्रष्टव्य है-
नायक ने कहा- ’बुद्धगुप्त! तुमको मुक्त किसने किया’
(कृपाण दिखाकर) बुद्धगुप्त ने कहा- ’इसने’।
नायक ने कहा- ’तो तुम्हें फिर बन्दी बनाऊँगा।’
’किसके लिए ? पोताध्यक्ष मणिभद्र अतल जल में होगा, नायक! अब इस नौका का स्वामी मै हूँ।’
कथा को गति देने वाले संवाद- चम्पा के प्रति बुद्धगुप्त के हृदय में उत्पन्न प्रेम कथोपकथनों में ही उभर आता है। वह क्या कुछ करने को तैयार नहीं है। पर चम्पा विवाह न करने का व्रत ले चुकी है। वह कथा संवादों से ही आगे बढ़ती है- ’यह क्या है जया ? इतनी बालिकाएँ कहाँ से बटोर लाई ?’ ’आज रानी का ब्याह है न ?’ कहकर जया ने हँस दिया।

बुद्धगुप्त विस्तृत जलनिधि की तरफ देख रहा था। उसे झकझोर कर चम्पा ने पूछा- ’क्या यह सच है ?’
’यदि तुम्हारी इच्छा हो, तो यह सच भी हो सकता है। कितने वर्षों से मैं इस ज्वालामुखी को अपनी छाती में दबाये हूँ।’
’चुप रहो महानाविक! क्या मुझे निस्सहाय और कंगाल जानकर तुमने आज सब प्रतिशोध लेना चाहा ?’
’मैं तुम्हारे पिता का घातक नहीं हूँ चम्पा! वह एक दूसरे दस्यु के शस्त्र-प्रहार से मरे।’
वातावरण की सृष्टि करने वाले संवाद- विवेच्य कहानी के संवाद वातावरण की सृष्टि भी करते है। कहानी के पहले-पहले संवाद ही सामुद्रिक तूफान, शून्य, एकान्त, भय, शीत आदि वातावरण को साकार कर देती है-

’बङा शीत है। कहीं से कोई कम्बल डालकर शीत से मुक्त तो करता।’
’आंधी की संभावना है। यही अवसर है। आज मेरे बन्धन शिथिल है।’
’तो क्या तुम भी बन्दी हो ?’
’हाँ, धीरे बोलो। इस नाव पर केवल दस नाविक और प्रहरी है।’
’शस्त्र मिलेगा?’
’मिल जायेगा। पोत से सम्बद्ध रज्जु काट सकोगे ?’
’हाँ।’

आकाशदीप कहानी का देशकाल और वातावरण-

आलोच्य कहानी में कितनी ही शताब्दियों पूर्व की घटनाओं की ओर संकेत है। उस समय भारतीय नाविक और व्यापारी जावा, बाली आदि द्वीपों में जाया करते थे तथा समुद्री आपत्तियों का सामना किया करते थे। भारतीय व्यापारी अपने देश को तो धन-धान्य से सम्पन्न बनाते ही थे, साथ ही वे इन द्वीपों के असभ्य लोगों का सभ्यता और मानवता का पाठ भी पढ़ाते थे। यही देशकाल, यही परिस्थितियाँ तथा यही वातावरण कहानी में सफलतापूर्वक साकार किया गया है। इस प्रकार देशकाल और वातावरण की दृष्टि से भी यह कहानी सफल और प्रभावी है।

आकाशदीप कहानी का उद्देश्य-

आलोच्य कहानी का उद्देश्य देश-प्रेम और मानव-प्रेम के आदर्शों को स्पष्ट करता रहा है। प्रसादजी एक आदर्शवादी कालाकार थे, अतः उनका आदर्शवाद यहाँ भी स्पष्ट है। चम्पा और बुद्धगुप्त के हृदय में वैयक्तिक प्रेम भी पनप जाता है, किन्तु यह प्रेम कहीं भी गन्दा नहीं हो पाता है। यह वियोग और त्याग की अग्नि में तपकर और पवित्र बनना चाहता है। देश-प्रेम और मानव-प्रेम का संकल्प पूरा करने के लिए कथाकार ने चम्पा को सुदूर द्वीप में छोङ दिया है जहाँ पर निरीह और भोले-भाले प्राणियों के दुख में सहानुभूति और सेवा के लिए जीवित रहती है और बुद्धगुप्त को वियोग की धरोहर देकर स्वदेश वापस कर दिया है।

उसमें भी आदर्श प्रेम दिखाया है। बुद्धगुप्त भी कभी किसी भी अवसर पर उत्तेजित और बल प्रयोग कर प्रेमिका को पाने का इच्छुक नही दिखलाई देता है। इस प्रकार प्रसादजी ने अपने आदर्शवादी उद्देश्य की बङे ही सफल ढंग से इस रचना में उतारा है।

आकाशदीप कहानी की भाषा-शैली-

’आकाशदीप’ कहानी की भाषा संस्कृत शब्दावली से युक्त शुद्ध साहित्यिक भाषा है। भाषा पर कवि प्रसाद की छाया स्पष्ट हैं आलंकारिता, लाक्षणिकता, सरसता, भावुकता आदि गुणों को भाषा में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। साहित्यिक भाषा का सौंदर्य पृथक से मन को मोह लेता है। भाषा के कुछ उदाहरण द्रष्टव्य है-
1. तारकखचित नील अम्बर और नील समुद्र के अवकाश में पवन ऊधम मचा रहा था। अन्धकार से मिलकर पवन दुष्ट हो रहा था। समुद्र में आंदोलन था। नौका लहरों में विकल थी।
2. चन्द्र के उज्जवल विजय पर अन्तरिक्ष में शरद्-लक्ष्मी ने आशीर्वाद के फूलों और खीलों में बिखेर दिया।
3. पश्चिम का पथिक थक गया था। उसका मुख पीला पङ गया था। अपनी शांत गम्भीर हलचल में जलनिधि विचार में निमग्न था। वह जैसे प्रकाश की उन्मीलन किरणों से विरक्त था।
कहानी मुख्यतः वर्णात्मक शैली में है पर आलंकारिक, लाक्षणिक और प्रतीकात्मक शैलियों का प्रायोग भी इसमें सहज ही देखा जा सकता है।

अन्य विशेषताएँ-

आलोच्य कहानी में कुछ अन्य विशेषताएँ भी है। यह कहानी इतिहास और कल्पना के सुन्दर समन्वय पर आधारित है। यद्यपि कल्पना का अंश अधिक है पर इसकी ऐतिहासिक झलक से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है। प्रसाद का आदर्शवादी दृष्टिकोण भी कहानी में उभरकर सामने आया है। कहानी का शीर्षक ’आकाशदीप’ भी उचित और सार्थक है। कहानी का समूचा कथानक चम्पा के चरित्र के चारों ओर ही घूमता है तथा ’आकाशदीप’ उसका प्रेरणास्रोत है। अतः आकाशदीप ही कहानी का शीर्षक रखा गया है। फिर ’आकाशदीप’ की भांति ही चम्पा का प्रेम निष्कलुष, एकाकी और दूर-देश का वासी बना रहता है। वह आजीवन आकाशदीप जलाती रहती है।

आकाशदीप कहानी का निष्कर्ष-

उपर्युक्त विवेचनोपरान्त कहा जा सकता है कि ’आकाशदीप’ कहानी कथा-तत्त्वों के आधार पर खरी उतरती है तथा अपनी विशेषताओं के कारण पाठकों का हृदय मोह लेती है। प्रसाद जैसे उत्कृष्ट कलाकार की कला का प्रयास भी हम इस कहानी में सहज ही पा लेते है। आकाशदीप एक अत्यन्त सफल और सुन्दर कहानी निर्विवाद रूप से सिद्ध हो जाती है।

प्रमुख नाटक सारांश

महत्त्वपूर्ण लिंक :

सूक्ष्म शिक्षण विधि    🔷 पत्र लेखन      

  🔷प्रेमचंद कहानी सम्पूर्ण पीडीऍफ़    🔷प्रयोजना विधि 

🔷 सुमित्रानंदन जीवन परिचय    🔷मनोविज्ञान सिद्धांत

🔹रस के भेद  🔷हिंदी साहित्य पीडीऍफ़  

🔷शिक्षण कौशल  🔷लिंग (हिंदी व्याकरण)🔷 

🔹सूर्यकांत त्रिपाठी निराला  🔷कबीर जीवन परिचय  🔷हिंदी व्याकरण पीडीऍफ़    🔷 महादेवी वर्मा

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