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अलंकार की परिभाषा – Alankar ki Paribhasha

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:12th Mar, 2022| Comments: 0

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आज के आर्टिकल में हम अलंकार का अर्थ(Alankar ka Arth)और अलंकार की परिभाषा(Alankar ki Paribhasha) को विस्तार से पढेंगे।

Alankar ki Paribhasha

अलंकार की परिभाषा – Alankar ki Paribhasha

Table of Contents

  • अलंकार की परिभाषा – Alankar ki Paribhasha
    • अलंकार शब्द की उत्त्पत्ति
    • अलंकार की परिभाषा – Alankar ki Paribhasha
      • काव्यप्रकाश में आचार्य मम्मट के अनुसार-
      • साहित्यदर्पण में आचार्य विश्वनाथ के अनुसार-
      • चन्द्रालोक में आचार्य पीयूषवर्ष जयदेव के अनुसार-
      • कवि पद्माकर के अनुसार-
      • काव्यादर्श में आचार्य दण्डी के अनुसार-
      • काव्यालंकार सूत्रवृत्तिकार आचार्य वामन के अनुसार-
      • अग्निपुराण के अनुसार-
      • हिन्दी के अलंकारवादी आचार्य केशवदास के अनुसार-
    • अलंकार की विशेषताएँ  – Alankar ki Visheshta
    • अलंकारो की संख्या:

अगर हम अलंकार का शाब्दिक अर्थ देखें तो सजावट या आभूषण होता है। अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है – अलम + कार। यहाँ पर अलम का अर्थ होता है ‘आभूषण।’ जिस प्रकार एक स्त्री अपनी सुन्दरता को बढ़ाने के लिए आभूषणों को प्रयोग करती हैं उसी प्रकार हम काव्य भाषा को सुन्दर बनाने के लिए अलंकारों का प्रयोग करतें है। इसका सीधा सा अर्थ यह निकला कि काव्य की शोभा को बढ़ाने वाले शब्द और अर्थ ही अलंकार कहलाते हैं।

” काव्यशोभा करान धर्मानअलंकारान प्रचक्षते ।”

अलंकार शब्द की उत्त्पत्ति

➡️ अलङ्करोतीति अलङ्कार – इस सूत्र के अनुसार इसका अर्थ है कि जो किसी काव्य की शोभा बढाता है ,अलंकार कहलाता है।
➡️ अलंक्रियते अनेन इति अलङ्कार – जिसके द्वारा किसी की शोभा बढ़ी जाए ,वह अलंकार है।
➡️ अलङ्करणमलङ्कार – इसका अर्थ है कि आभूषण ही अलंकार है।

अलंकार की परिभाषा – Alankar ki Paribhasha

अब हम अलंकार की परिभाषाओं को अध्ययन करेंगे।

काव्यप्रकाश में आचार्य मम्मट के अनुसार-

’’उपकुर्वन्ति तं सन्तं ये ऽङ्गद्वारेण जातुचित्।
हारादिवदलंकारास्तेऽनुप्रासोपमादयः।।’’

जो धर्म, अंग अर्थात् अंगभूत शब्द और अर्थ के द्वारा उसमें (उत्कर्ष उत्पन्न कर) विद्यमान होने वाले उस (अंगी) रस का हार इत्यादि के समान कभी उपकार करते है, वे अनुप्रास, उपमा आदि अलंकार कहलाते है।

साहित्यदर्पण में आचार्य विश्वनाथ के अनुसार-

’’शब्दार्थयोरस्थिरा ये धर्मा शोभातिशायिनः।
रसादीनुपकुर्वन्तोऽलङ्कारास्तेङ्गदादिवत्।।’’

अलंकार काव्य शब्दार्थ के अस्थिर धर्म है। ये कविता रूपी कामिनी के शरीर की शोभा बढ़ाते है, जिस प्रकार कटक,कुंडल और हार जैसे आभूषण नायिका के शरीर की शोभा बढ़ाते है।

चन्द्रालोक में आचार्य पीयूषवर्ष जयदेव के अनुसार-

’’अंगीकारोति यः काव्यं शब्दार्थावनलंकृती।
असौ न मन्यते कस्माद्, अनुष्णमनलंकृती।।’’

जो व्यक्ति अलंकारों के बिना काव्य को मानता है, वह आग को भी शीतल कह सकता है। इसलिए अलंकार युक्त रचना ही काव्य है।

कवि पद्माकर के अनुसार-

’’शब्दहुँ ते कहुँ अर्थ ते कहु दुँह ते उर आनि।
अभिप्राय जिहि भाँति जहे अलंकार सो मानि।।’’

शब्द और अर्थ ह्रदय से अपेक्षित अभिप्राय को व्यक्त करने वाले तत्व अलंकार कहलाते है।

काव्यादर्श में आचार्य दण्डी के अनुसार-

’काव्याशोभाकरान् धर्मानलंकारान् प्रचक्षते।’

काव्य की शोभा बढ़ाने वाले धर्म ही अलंकार कहलाते है

काव्यालंकार सूत्रवृत्तिकार आचार्य वामन के अनुसार-

’’काव्यशोभायाः कर्तारो धर्माः गुणाः।
तदतिशयहेतस्त्वलंकाराः।।’’

काव्य की शोभा में वृद्धि करने वाले धर्म गुण कहलाते है। इनकी अतिशयता ही अलंकार है। अर्थात गुण काव्य के शोभाकारक होते है।

अग्निपुराण के अनुसार-

’’अलंकार रहिता विधवेवसरस्वती।’’

अलंकारों से रहित काव्य या सरस्वती विधवा के सामान है।

हिन्दी के अलंकारवादी आचार्य केशवदास के अनुसार-

’’जदपि सुजाति सुलच्छनी सुबरन सरस सुवृत्त।
भूषण बिनु न बिराजहि, कविता बनिता मित।।’’

अलंकारों के बिना कविता और आभुषणों के बिना स्त्री शोभा नही पाती। भले ही वह उत्तम जाति वाली ,सुलक्षणा, सुंदर वर्ण, सरस और सुंदर वृत्त वाली क्यों न हो।

शुक्ल जी के अनुसार ,’ भावों का उत्कर्ष दिखाने और वस्तुओं के रूप ,गुण ,क्रिया का अधिक तीव्रता के साथ अनुभव कराने में सहायक उक्ति को अलंकार कहते है।’

सुमित्रानंदन पन्त के अनुसार ,’ अलंकार वाणी की सजावट के लिए नहीं है ,वे भाव की अभिव्यक्ति के विशेष द्वार है। भाषा की पुष्टि के लिए ,राग की परिपूर्णता के लिए आवश्यक उपादान है। वस्तुत: काव्य शरीर को सजाने के लिए अलंकार गहनों का प्रयोग अपेक्षित है।

अलंकार की विशेषताएँ  – Alankar ki Visheshta

➡️ अलंकारों का मूल वक्रोक्ति या अतिशयोक्ति है।
➡️ अलंकार और अलंकार्य में कोई भेद नहीं है।
➡️ अलंकार काव्य सौन्दर्य का मूल होते है।
➡️ अलंकार काव्य का शोभाधायक धर्म है।
➡️ अलंकार रहित काव्य शंृगाररहित विधवा के समान है।
➡️ स्वभावोक्ति न तो अलंकार है तथा न ही काव्य है अपितु वह सिर्फ वार्ता है।
➡️ अलंकार काव्य का सहायक तत्व है।

अलंकारो की संख्या:

आचार्य संख्या
मम्मट67
भरतमुनि4
वामन33
दंडी35
भामह38
उद्भट40
रूद्र्ट66
जयदेव104
अप्पयदीक्षित133

 

उपमा अलंकारवक्रोक्ति अलंकार
उत्प्रेक्षा अलंकारभ्रांतिमान अलंकार
दीपक अलंकारव्यतिरेक अलंकार
विरोधाभास अलंकारश्लेष अलंकार
अलंकार सम्पूर्ण परिचयसाहित्य के शानदार वीडियो यहाँ देखें 
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