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घनानंद कवि परिचय – Ghananand Biography in Hindi

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:16th May, 2022| Comments: 0

आज के पोस्ट में हम रीतिमुक्त कवि घनानंद (Ghananand Biography in Hindi) के सम्पूर्ण जीवन परिचय के बारे में पढेंगे। इसमें जो तथ्य है वह परीक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।

घनानंद कवि परिचय – Introduction to Ghananand Poetry

Table of Contents

  • घनानंद कवि परिचय – Introduction to Ghananand Poetry
    • रचनाएँ –
    • घनानंद कवि परिचय – Ghananand ka Jivan Parichay
    • शुक्ल के कथन –
    • दिनकर का कथन –
    • प्रसिद्ध पंक्तिया –
  • (1689-1739) समय-काल
  • आश्रय – मुहम्मद शाह रंगीला(मीर मुंशी पद पर)
  • रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवि ।
  • इन्हें ब्रजभाषा प्रवीण कहा  जाता है
  • “प्रेम की यातना” का कवि।
  • इनके छंदों को सुछन्दो की उपमा दी गयी है  ।

रचनाएँ –

  • सुजान सागर
  • कृपा काण्ड
  • रस केलिवल्ली
  • विरह लीला
  • लोकसार
  • इश्कलता

घनानंद कवि परिचय – Ghananand ka Jivan Parichay

★इन्होंने 752 कवित सवैया, 1057 पद और 2354 दोहे चौपाइयां की रचना की है ।(नगेन्द्र के अनुसार )

★ विश्वनाथ प्रसाद मिश्र द्वारा “घनानन्द ग्रन्थावली” सम्पादित है ।

★निम्बार्क सम्प्रदाय में दीक्षित।

★सुजान नामक नर्तकी पर आसक्त होने के कारण दरबार से निष्काषित।

★वियोग श्रृंगार के प्रधान मुक्तक कवि।

★घनानन्द के काव्य की मूल प्रेरक उनकी प्रेमिका सुजान है ।

★ घनानन्द के प्रिय प्रतीक – चातक

⇒ अपनी रचनाओं में कृष्ण के लिए “सुजान” शब्द का प्रयोग किया है ।

★ विरहलीला ग्रन्थ फ़ारसी छंदों से आबद्ध है ।

शुक्ल के कथन –

“मोन मधि की पुकार “

“घनानंद प्रेम के पीर के कवि है ।”

“घनानन्द को साक्षात् रसमूर्ति “ एवं“लाक्षणिक मूर्ति पूजा “ कहा है ।

“ब्रजभाषा काव्य के प्रकाश स्तम्भो में से एक है ।”

” प्रेम मार्ग का ऎसा प्रवीण धीर कवि एव जबादानी का दावा रखने वाला ब्रज भाषा का कोई दूसरा कवि नही हुआ।”

“भाषा के लक्षक एव व्यंजन बल की सीमा कहा तक ह , इसकी पूरी परख इनको ही थी”

“प्रेम की गूढ़ अंतर्दशा का उद्घाटन जैसा इनमे ह। वैसा अन्य श्रृंगारी कवि में नही है ।”

दिनकर का कथन –

“विरह तो घनानंद के काव्य की पूंजी है ।”

प्रसिद्ध पंक्तिया –

“अति सूधो स्नेह को मार्ग ,जहाँ नेकु सयापन बाँक नही”

” मन लेहु पर देहु छँटाक नही ”

“लोग लागि कवित्त बनावत, मोहि तो मेरो कवित बनावत”

1. ’’अरसानि गही वह बानि कहू
सरसानि सो आनि निरोहत है।’’
2. ’’काकी कूर कोकिला कहाँ को बैर काढ़ति री,
कूकि-कूकि अबही करेजो किन कोरि रै’’
3. ’’लोग है लागि कवित्त बनावत
मोहि तो मेरे कवित्त बनावत’’
4. उघरो जग, छाय रहे घन आनंद,
चातक ज्यों तकिए अब तौ’’
5. ’’अति सूधो स्नेह को मारग है,
जहँ नैकु सयानप बाँक नहीं’’ (विरहलीला)

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार-

’’प्रेम दशा की व्यंजना ही इनका अपना क्षेत्र है। प्रेम की गूढ़ अंतर्दशा का उद्घाटन जैसा इनमें है, वैसा हिन्दी के अन्य शंृगारी कवि में नहीं।’’

गणपति चन्द्र गुप्त के अनुसार-

’’घनानंद नाम के दो व्यक्ति थे, रीतिमुक्त कवि घनानंद और भक्त कवि आनंदघन थे।’’

डाॅ. नगेन्द्र के अनुसार –

घनानंद के कुल
कवित्त-सवैयों की संख्या- 752 है।
पदों की संख्या- 1057
दोहे-चैपाईयों की संख्या-2354 है।

गणपति चन्द्र गुप्त के अनुसार-

’’इसमें कोई संदेह नहीं है कि मध्यकालीन प्रबंध काव्य में जो स्थान तुलसीदास के ’रामचरितमानस’ का है, वही इस काल के मुक्तक काव्य में घनानंद के कवित्त सवैयों का है, उनके मुक्तक हिन्दी मुक्तक के सौंदर्य की चरम सीमा का स्पर्श करते है; यह तथ्य है।’’

आचार्य शुक्ल के अुनसार-

’’भाषा के लक्षक एवम् व्यंजक बल की सीमा कहाँ तक है, इसकी पूरी परख इन्हीं को थी।’’

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार-

’’घनानंद ने न तो बिहारी की तरह ताप को बाहरी पैमाने से मापा है, न बाहरी उछल-कूद दिखाई है। जो कुछ हलचल है, वह भीतर की है, बाहर से वह वियोग प्रशांत और गंभीर है।’’ घनानंद ने गीति पद्धति को छोङकर कवित्त और सवैया पद्धति को अपनाया।

अज्ञेय जीवन परिचय देखें 

विद्यापति जीवन परिचय  देखें 

अमृतलाल नागर जीवन परिचय देखें 

रामनरेश त्रिपाठी जीवन परिचय  देखें 

महावीर प्रसाद द्विवेदी  जीवन परिचय देखें 

डॉ. नगेन्द्र  जीवन परिचय देखें 

भारतेन्दु जीवन परिचय देखें 

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