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Kedarnath Singh – केदारनाथ सिंह – कवि परिचय

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:27th May, 2020| Comments: 0

आज की पोस्ट में हम प्रगतिवादी कवि केदारनाथ सिंह(Kedarnath Singh) के जीवन परिचय व उनकी महत्त्वपूर्ण कृतियों के बारे में जानकारी हासिल करेंगे |

केदारनाथ सिंह कवि परिचय(Kedarnath Singh poet introduction)

Table of Contents

  • केदारनाथ सिंह कवि परिचय(Kedarnath Singh poet introduction)
  • मुख्य कृतियाँ(⇒Kedarnath Singh)
  • आलोचना :
    • ⇒सम्मान
    • अन्य विवरण
    • पुरस्कार(Kedarnath Singh)
      • बाघ’ कविता संग्रह की कुछ पंक्तियां
    • *’अकाल में सारस’ कविता संग्रह की कुछ पंक्तियां-*
      • बनारस कविता  (Kedarnath Singh)
      • Kedarnath Singh
    • केदार नाथ सिंह(Kedarnath Singh) की एक और कविता

Kedarnath Singh

जन्म : 1934, चकिया, बलिया (उत्तर प्रदेश)

⇒मृत्यु : 19.03.2018


मुख्य कृतियाँ(⇒Kedarnath Singh)

⇒कविता संग्रह :

  • अभी बिल्कुल अभी
  • जमीन पक रही है
  • यहाँ से देखो
  • बाघ
  • अकाल में सारस
  • उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ
  • टालस्ताय और साइकिल

आलोचना :

  • कल्पना और छायावाद
  • आधुनिक हिंदी कविता में बिंबविधान
  • मेरे समय के शब्द
  • मेरे साक्षात्कार

 

⇒संपादन : ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन), समकालीन रूसी कविताएँ, कविता दशक, साखी

(अनियतकालिक पत्रिका), शब्द (अनियतकालिक पत्रिका)

 

⇒सम्मान

मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, कुमारन आशान पुरस्कार, जीवन भारती सम्मान, दिनकर पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार,

व्यास सम्मान

⇒विशेष
केदारनाथ सिंह चर्चित कविता संकलन ‘तीसरा सप्तक’ के सहयोगी कवियों में से एक हैं। इनकी कविताओं के

अनुवाद लगभग सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, स्पेनिश, रूसी, जर्मन और हंगेरियन आदि

विदेशी भाषाओं में भी हुए हैं। कविता पाठ के लिए दुनिया के अनेक देशों की यात्राएँ की हैं।

केदारनाथ सिंह कवि परिचय

अन्य विवरण

श्री केदारनाथ सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के गांव चकिया में 7 जुलाई 1934 को हुआ।

उन्होंने वाराणसी के उदय प्रताप कॉलेज से बी.ए करने के बाद बीएचयू से एम.ए और पी.एचडी की डिग्री हासिल की।

शुरुआती दिनों में वह गोरखपुर में हिंदी टीचर के तौर पर काम करते रहे और उसके बाद वह दिल्ली के

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग में बतौर प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष काम करने लगे।

उन्होंने जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग में भी अपनी सेवा दी और वहीं से रिटायर भी हुए।

पुरस्कार(Kedarnath Singh)

श्री केदारनाथ सिंह को ‘अकाल में सारस’ कविता संग्रह के लिए वर्ष 1989 में साहित्य अकादमी अवॉर्ड से नवाजा चुका है।

उनकी इस कविता संग्रह का अग्रेंजी संस्करण ‘क्रेंस इन ड्रॉथ’ भी बाजार में आया, जिसे पाठकों ने बेहद पसंद किया।

श्री सिंह को व्यास सम्मान से भी नवाजा जा चुका है।

इसके अलावा उन्हें मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, कुमार आशान पुरस्कार, दिनकर पुरस्कार, जीवनभारती पुरस्कार

भी मिल चुका है।

बाघ’ कविता संग्रह की कुछ पंक्तियां

कथाओं से भरे इस देश में
मैं भी एक कथा हूँ
एक कथा है बाघ भी
इसलिए कई बार
जब उसे छिपने को नहीं मिलती
कोई ठीक-ठाक जगह
तो वह धीरे से उठता है
और जाकर बैठ जाता है
किसी कथा की ओट में

फिर चाहे जितना ढूँढ़ो
चाहे छान डालो जंगल की पत्ती-पत्ती
वह कहीं मिलता ही नहीं है

*’अकाल में सारस’ कविता संग्रह की कुछ पंक्तियां-*

भर लो
दूध की धार की
धीमी-धीमी चोटें
दिये की लौ की पहली कँपकँपी
आत्मा में भर लो

भर लो
एक झुकी हुई बूढ़ी
निग़ाह के सामने
मानस की पहली चौपाई का खुलना
और अन्तिम दोहे का
सुलगना भर लो

भर लो
ताकती हुई आँखों का
अथाह सन्नाटा
सिवानों पर स्यारों के
फेंकरने की आवाज़ें
बिच्छुओं के
उठे हुए डंकों की
सारी बेचैनी
आत्मा में भर लो

और कवि जी सुनो
इससे पहले कि भूख का हाँका पड़े
और अँधेरा तुम्हें चींथ डाले

भर लो
इस पूरे ब्रह्माण्ड को
एक छोटी-सी साँस की
डिबिया में भर लो।

बनारस कविता  (Kedarnath Singh)

कवि केदारनाथ की चर्चित कविता बनारस

इस शहर में बसंत
अचानक आता है।
और जब आता है तो मैंने देखा है
लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ से
उठता है धूल का एक बवंडर
और इस महान पुराने शहर की जीभ
किरकिराने लगती हैं
जो है वह सुगबुगाता है
जो नहीं है वह फेंकने लगता है पचखियां
आदमी दशाश्वमेघ पर जाता है
और पाता है घाट का आखिरी पत्थर
कुछ और मुलायम हो गया है
सीढ़ियों पर बैठे बन्दरों की आँखों में
अब अजीब-सी नमी है
और एक अजीब-सी चमक से भर उठा है
भिखारियों के कटोरों का निचाट खालीपन
तुमने कभी देखा है

Kedarnath Singh

खाली कटोरों में बसन्त का उतरना।
यह शहर इसी तरह खुलता है
इसी तरह भरता
और खाली होता है यह शहर
इसी तरह रोज-रोज एक अनन्त शव
ले जाते हैं कन्धे
अन्धेरी गली से
चमकती हुई गंगा की तरफ
इस शहर में धूल
धीरे-धीरे उड़ती है
⇒धीरे-धीरे चलते हैं लोग
धीरे-धीरे बजते हैं घण्टे
शाम धीरे-धीरे होती है
यह धीरे-धीरे होना

धीरे-धीरे होने की एक सामूहिक लय
दृढ़ता से बांधे है समूचे शहर को
इस तरह कि कुछ भी गिरता नहीं हैं
हि हिलता नहीं है कुछ भी
कि जो चीज जहां थी
वहीं पर रखी है
कि गंगा वहीं है
⇒कि वहीं पर बंधी है नाव
कि वहीं पर रखी है तुलसीदास की खड़ाऊँ
सैकड़ों बरस से
कभी सई-सांझ
बिना किसी सूचना के घुस जाओ इस शहर में
कभी आरती के आलोक में
इसे अचानक देखो
अद्भुत है इसकी बनावट
यह आधा जल में है
आधा मंत्र में
⇒आधा फूल में है
आधा शव में
⇒आधा नींद में है
आधा शंख में
अगर ध्यान से देखो

तो यह आधा है
और आधा नहीं है
जो है वह खड़ा है
बिना किसी स्तम्भ के
जो नहीं है उसे थामे हैं
राख और रोशनी के ऊँचे-ऊँचे स्तम्भ
आग के स्तम्भ
और पानी के स्तम्भ
धुँएं के
खूशबू के
आदमी के उठे हुए हाथों के स्तम्भ
किसी अलक्षित सूर्य को
देता हुए अर्ध्य,
शताब्दियों से इसी तरह
गंगा के जल में
अपनी एक टांग पर खड़ा है यह शहर
अपनी दूसरी टांग से
बिलकुल बेखबर!

केदार नाथ सिंह(Kedarnath Singh) की एक और कविता

*स्त्रियां जब चली जाती हैं*

स्त्रियां
अक्सर कहीं नहीं जातीं
साथ रहती हैं
पास रहती हैं
जब भी जाती हैं कहीं
तो आधी ही जाती हैं
शेष घर मे ही रहती हैं

लौटते ही
पूर्ण कर देती हैं घर
पूर्ण कर देती हैं हवा, माहौल, आसपड़ोस

स्त्रियां जब भी जाती हैं
लौट लौट आती हैं
लौट आती स्त्रियां बेहद सुखद लगती हैं
सुंदर दिखती हैं
प्रिय लगती हैं

स्त्रियां
जब चली जाती हैं दूर
जब लौट नहीं पातीं
घर के प्रत्येक कोने में तब
चुप्पी होती है
बर्तन बाल्टियां बिस्तर चादर नहाते नहीं
मकड़ियां छतों पर लटकती ऊंघती हैं
कान में मच्छर बजबजाते हैं
देहरी हर आने वालों के कदम सूंघती है

स्त्रियां जब चली जाती हैं
ना लौटने के लिए
रसोई टुकुर टुकुर देखती है
फ्रिज में पड़ा दूध मक्खन घी फल सब्जियां एक दूसरे से बतियाते नहीं
वाशिंग मशीन में ठूँस कर रख दिये गए कपड़े
गर्दन निकालते हैं बाहर
और फिर खुद ही दुबक-सिमट जाते हैँ मशीन के भीतर

स्त्रियां जब चली जाती हैं
कि जाना ही सत्य है
तब ही बोध होता है
कि स्त्री कौन होती है
कि जरूरी क्यों होता है
घर मे स्त्री का बने रहना

Kedarnath Singh

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