प्रयोगवाद महत्त्वपूर्ण तथ्य
🔷साम्यवाद व मार्क्सवाद दृष्टि से ओतप्रोत साहित्य धारा प्रगतिवाद के पश्चात हिंदी साहित्य में प्रयोगवाद का उदय हुआ ।
⋅🔷 छायावादोत्तर काल की वह काव्य धारा जिसमें काव्य के क्षेत्र में नए-नए प्रयोग किए गए प्रयोगवाद के नाम से जानी जाती है ।
🔷 सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय को प्रयोगवाद का प्रवर्तक माना जाता है ।
🔷अज्ञेय के संपादन में 1943 ईस्वी में प्रकाशित तार सप्तक से प्रयोगवाद का आरंभ माना जाता है ।
🔷⋅अज्ञेय के संपादन में कुल चार तार सप्तक प्रकाशित हुए, जिनमें अज्ञेय ने सात-सात कवियों की रचनाएं संकलित की ।
🔷तार सप्तक की मूल योजना प्रभाकर माचवे व नेमीचंद जैन की थी ।
🔷इन दोनों ने अपनी योजना को अज्ञेय के सामने रखा ,जिसे उन्होंने क्रियान्वित किया ।
🔷हिंदी कविता में प्रयोगों के आरंभ कर्ता निराला माने जाते हैं।
🔷 निराला की कविताओं को प्रयोगों का एल्बम कहा जाता है।
🔷 ⋅निराला ने छंद ,प्रतीक, उपमान आदि सभी क्षेत्रों में प्रयोग किए ।
🔷निराला ने अपनी प्रथम कविता जूही की कली में कविता को छन्दों के बंधन से मुक्त किया।
🔷 कुकुरमुत्ता कविता में इन्होंने कुकुरमुत्ता गुलाब जैसे नये प्रतीक प्रयुक्त की किए ।
🔷राहों के अन्वेषक तार सप्तक कवि संबोधन ।
🔷प्रयोगवाद का नामकरण कर्ता आचार्य नंददुलारे वाजपेयी को माना जाता है ,जिन्होंने प्रयोगवादी रचनाऐं शीर्षक निबंध लिखा।
🔷 तार सप्तक की भूमिका में अज्ञेय नें लिखा है ,सातों कवि एक स्कूल के नहीं हैं,राहीं नहीं राहों के अन्वेषी हैं।
🔷 दूसरा सप्तक की भूमिका में अज्ञेय ने लिखा हमें प्रयोगवादी कहना उतना ही सार्थक या निरर्थक है ,जितना की हमें कविता वादी कहना ।
🔷अज्ञेय के अनुसार प्रयोग अपने आप में ईस्ट नहीं है ,वह साधन है ।
🔷अज्ञेय के संपादन में कुल 4तार सप्तक प्रकाशित हुए :-
- तार सप्तक 1943ईस्वी
- दूसरा सप्तक 1951 ईस्वी
- तीसरा सप्तक 1959 ईस्वी
- चौथा सप्तक 1979 ईस्वी
🔷प्रयोगवादी आंदोलन के प्रचार-प्रसार हेतु अज्ञेय ने 1946 ईस्वी में “प्रतीक “का प्रकाशन किया ।
🔷⋅प्रयोगवाद के विकसित रूप को ‘नई कविता ‘के नाम से जाना जाता है ।
🔷प्रयोगवाद ने दूसरे सप्तक के प्रकाशन के बाद नई कविता का रूप धारण कर लिया ।
🔷डॉ रामविलास शर्मा और नामवर सिंह ने नई कविता को प्रयोगवाद का छद्म रूप कहां ।
🔷नई कविता के नामकरण का श्रेय अज्ञेय को जाता है ।
🔷उन्होंने 1952 में आकाशवाणी पटना से प्रसारित एक रेडियो वार्ता में नई कविता नाम का प्रयोग किया ।
🔷1954 में इलाहाबाद से जगदीशगुप्त व रामस्वरूप चतुर्वेदी के संपादन मे नई कविता पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ।
🔷 डॉ बच्चन सिंह ने नई कविता को प्रगतिवादी व प्रयोगवाद दो अति वादी छोरो को मिलाने वाली कविता कहा ।
🔷नई कविता का आरंभ और नामकरण अंग्रेजी के न्यू पोएट्री काव्य आंदोलन की तर्ज पर हुआ।
,🔷 लघु मानव की प्रतिष्ठा नई कविता की महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं।
⋅🔷 ⋅लघु मानव से तात्पर्य साधन हीन ,उपेक्षित साधारण व्यक्ति से हैं।
🔷 नई कविता का रूप स्पष्ट करने के लिए निम्न आलोचनात्मक कृतियों का प्रकाशन हुआ :-
🌹⋅नई कविता के प्रतिमान– लेखक डॉक्टर लक्ष्मीकांत वर्मा
🌹 कविता के नए प्रतिमान –लेखक डॉक्टर नामवर सिंह
🌹नई कविता का आत्म संघर्ष –लेखक गजानन माधव मुक्तिबोध
🌹नई कविता सीमाएं और संभावनाए –गिरिजाकुमार माथुर
🌹⋅नई कविता के बहाने लघु मानव पर –विजयदेव नारायण साही ।
🔷नया प्रतीक ,नये पत्ते ,क,ख,ग,प्रतिमान आदि पत्र-पत्रिकाओं ने नई कविता को प्रोत्साहन प्रदान किया ।
🔷नई कविता के कवियों ने रस सिद्धांत को चुनौती देकर रस के स्थान पर द्धन्द्ध, तनाव एवं बेचैनी को काव्य की आत्मा माना|
प्रयोगवाद और नई कविता के कवि : कालक्रमानुसार
- 1911-1987 ई॰ अज्ञेय
- 1911-1993 ई॰ शमशेर बहादुर सिंह
- 1914-1985 ई॰ भवानी प्रसाद मिश्र
- 1917-1964 ई॰ गजानन माधव मुक्तिबोध
- 1917-1991 ई॰ प्रभाकर माचवे
- 1919-1975 ई॰ भारत भूषण अग्रवाल
- 1919-1994 ई॰ गिरिजा कुमार माथुर
- 1922-2000 ई॰ नरेश मेहता
- 1922-2002 ई॰ लक्ष्मीकान्त वर्मा
- 1922-1992 ई॰ रघुवीर सहाय
- 1924 ई॰ रामदरश मिश्र
- 1924-1982 ई॰ विजयदेव नारायण साही
- 1926-2001 ई॰ जगदीश गुप्त
- 1926-1997 ई॰ धर्मवीर भारती
- 1927-1983 ई॰ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
- 1927 ई॰ कुँवर नारायण
- 1931-1986 ई॰ श्रीकान्त वर्मा
- 1934 ई॰ केदारनाथ सिंह
- 1936-1975 ई॰ धूमिल
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