दोस्तों आज हम राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद(Raja Shiv Prasad Sitare Hind) के बारे में जानेंगे|
राजा शिवप्रसाद सितारे ‘हिंद’ – Raja Shiv Prasad Sitare Hind
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इनका जन्म 1824 ई. में हुआ था
दोस्तों प्रारंभिक खड़ी बोली के विकास में योगदान की बात होती है तो राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद को याद किया जाता है उन्होंने खड़ी बोली व नागरी लिपि के अस्तित्व की लड़ाई लड़ी थी क्योंकि उस समय कोर्ट कचहरी में उर्दू का बोलबाला था और दूसरी तरफ अंग्रेज अपनी अंग्रेजी भाषा को सुव्यवस्थित करने में लगे थे उस समय खड़ी बोली घुटनों के बल खड़ी होने की कोशिश कर रही थी लेकिन सहारा देने वाला कोई नहीं था|
उस समय राजा शिवप्रसाद सितारे ‘हिंद’ ने खड़ी बोली और नागरी के समर्थन में आवाज बुलंद की उन्हीं के योगदान से शिक्षा के महकमे में नागरी लिपि में लिखा जाने लगा
इन्होने 1845 ईस्वी में ‘बनारस अखबार’ निकाला जिसके माध्यम से उन्होंने हिंदी का प्रचार-प्रसार किया यह पत्रिका साप्ताहिक थी
राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद की कुल 32 रचनाएं हैं जिनमें से 18 हिंदी में और शेष उर्दू में है
प्रसिद्ध रचनाएं:
- मानव धर्म सार
- भूगोल हस्तामलक
- आलसियों का कोड़ा
- राजा भोज का सपना
- इतिहास तिमिरनाशक
- वीर सिंह का वृतांत
- उपनिषद सार
- बेताल पच्चीसी
हिंदी का गंवारपन दूर कर शिष्ट भाषा बनाने में इनका महत्वपूर्ण योगदान है इनके बनारस अखबार के लिपि नागरी थी किंतु भाषा उर्दू थी इनके उर्दू झुकाव का भारतेंदु ने विरोध किया था
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हालांकि दिलचस्प बात ये भी थी कि भारतेंदु हरिश्चंद्र इनको अपना गुरु मानते थे
ठेठ हिंदी के समर्थक राजा शिवप्रसाद सितारे ‘हिंद’ संस्कृत ,अरबी ,फारसी ,अंग्रेजी और ठेठ हिंदी सभी को मिलाकर एक सर्वमान्य भाषा के पक्षधर थे
भूगोलहस्तामलक, वामामनरंजन व राजा भोज का सपना में ऐसी ही भाषा का प्रयोग है इन की दृष्टि में यह आमफ़हम और खासपसंद भाषा थी
रामविलास शर्मा ने ‘भूगोलहस्तामलक’ की भाषा को बोलचाल की हिंदी कहा है
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आपकी पाठ्य सामग्री निस्संदेह सराहनीय है।आपकी यह पहल उपयोगी साबित हो रही है।
साधुवाद.।।
जी धन्यवाद