रोला छंद – परिभाषा, 10+उदाहरण, पहचान | Rola Chand

आज के आर्टिकल में हम काव्यशास्त्र के अंतर्गत रोला छंद (Rola Chand) को विस्तार से पढेंगे ,इससे जुड़ें महत्त्वपूर्ण उदाहरणों को भी पढेंगे।

रोला छंद – Rola Chand

रोला छंद

⇒ रोला छंद के लक्षण

  • यह मात्रिक सम छंद होता है।
  • इस छंद के प्रत्येक चरण में 11,13 मात्राओं के क्रम से यति होती है।
  • इसमें कुल इसमें 24 मात्रायें होती हैं।
  • इसमें तुक प्रायः दो-दो चरणों में मिलती है।
  • प्रायः इसके चरणांत में दो गुरु (ऽऽ) रखे जाते हैं, परन्तु ऐसा होना अनिवार्य नहीं है।

रोला छंद के उदाहरण – Rola Chand Example

जिसकी रज में लोट-लोटकर बङे हुये हैं।
।।ऽ      ।।  ऽ  ऽ।    ऽ।।।    ।ऽ  ।ऽ  ऽ    – 24 मात्रायें
घुटनों के बल सरक-सरक कर खङे हुए हैं।

हे देवी। यह नियम सृष्टि में सदा अटल है,
ऽ ऽ ऽ   ।।   ।।।    ऽ।  ऽ । ऽ   ।।।   ऽ
रह सकता है वही, सुरक्षित जिसमें बल है।
।।  ।। ऽ    ऽ । ऽ  ।। ऽ।    ।। ऽ   ।।   ऽ

निर्बल का है नहीं, जगत में कहीं ठिकाना,
ऽ।।    ऽ   ऽ । ऽ   ।।।   ऽ । ऽ   । ऽ ऽ
रक्षा साधन उसे, प्राप्त हों चाहे नाना।।
ऽ ऽ  ऽ।।   । ऽ   ऽ।    ऽ  ऽ ऽ  ऽ ऽ
              11 मात्रा 13 मात्रा

नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है।
ऽ ऽ।।     ।। ऽ।    ।।।  ।।   ।।  ऽ।।   ऽ – 24 मात्राएँ

सूर्य चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है।
ऽ।  ऽ।  ।।   ।।।     ऽ। ऽ   ऽ ऽ।।  ऽ – 24 मात्राएँ

नदियां प्रेम-प्रवाह, फूल-तारा-मण्डल है।
।। ऽ    ऽ।  । ऽ।   ऽ।   ऽ ऽ   ऽ।।    ऽ – 24 मात्राएँ

बन्दीजन खगवृंद, शेष फन सिंहासन है।।
ऽ ऽ।।     ।। ऽ।    ऽ। ।।    ऽ ऽ।।   ऽ – 24 मात्राएँ

 

नन्दन वन था जहाँ, वहाँ मरूभूमि बनी है।
जहाँ सघन थे वृक्ष, वहाँ दावाग्नि घनी है।।
जहाँ मधुर मालती, सुरभि रहती थी फैली।
फूट रही है आज, वहाँ पर फूट विषैली।।

हुआ बाल रवि उदय, कनक नभ किरणें फूटीं।
भरित तिमिर पर परम, प्रभामय बनकर टूटीं।
जगत जगमगा उठा, विभा वसुधा में फैली।
खुली अलौकिक ज्योति-पुंज की मंजुल थैली।।

जीती जाती हुई, जिन्होंने भारत बाजी।
ऽ ऽ ऽ ऽ । ऽ । ऽ ऽ ऽ।। ऽ ऽ
निज बल से बल मेट, विधर्मी मुगल कुराजी।।
।। ।। ऽ ।। ऽ। । ऽ ऽ ।।। । ऽ ऽ
जिनके आगे ठहर, सके जगी न जहाजी।
।। ऽ ऽ ऽ ।।। । ऽ ऽ ऽ । । ऽ ऽ
है ये वही प्रसिद्ध, छत्रपति भूप शिवाजी।।
ऽ ऽ । ऽ । ऽ। ।।।। ऽ। । ऽ ऽ

 रोला छंद के अन्य उदाहरण – Rola Chand  Ke Udaharan

जोहि सुमिरत सिधि होई, गणनायक करिवर बदन।
।। ।।।। ।। ऽ। ।। ऽ ।। ।।।। ।।।
करहु अनुग्रह सोइ, बुद्धिरासि सुभ-गुन-सदन।।
।।। । ऽ।। ऽ । ऽ। ऽ । ।। ।। ।।।

उठो उठी हे वीर! आज तुम निद्रा त्यागो।
करो महासंग्राम, नहीं कायर हो भागो।।

तुम्हें वरेगी विजय, अरे यह निश्चय जानो।
भारत के दिन लौट, आयेंगे मेरी मानो।।

यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै।।

जो जगहित पर प्राण निछावर है कर पाता।
जिसका तन है किसी लोकहित में लग जाता।।

तुम्हें वरेगी विजय, अरे यह निश्चय जानो।
भारत के दिन लौट, आयेंगे मेरी मानो।।

भाव छोङ कर, दाम, अधिक जब लेते पाया।
शासन-नियम-त्रिशूल झूल उसके सर आया।।
बहार आया माल, सेठ नि जो था चांपा।
बंद जेल में हुए, दवा बिन मिटा मुटापा।।

रोला को लें जान, छंद यह-छंद-प्रभाकर।
करिए हँसकर गान, छंद दोहा-गुण-आगर।।
करें आरती काव्य-देवता की-हिल-मिलकर।
माँ सरस्वती हँसें, सीखिए छंद हुलसकर।।

चतुर बहुत है श्याम, किशोरी मेरी भोरी।
लीनो चैन चुराय, लली ने चोरी चोरी।
तीन लोक के देव, बने वाके चपरासी।
फाँस प्रेम में लियो, देख के आवे हाँसी।।

उल्लाला छंद

उदाहरण अलंकार

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