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सरोज स्मृति || व्याख्या || सूर्यकांत त्रिपाठी निराला || HINDI SAHITYA

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:20th May, 2022| Comments: 3

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आज की पोस्ट में कवि निराला की चर्चित कविता सरोज स्मृति को व्याख्या सहित समझाया गया है , साथ में महत्वपूर्ण प्रश्न भी दिए गए है ,जो किसी भी परीक्षा के लिए उपयोगी साबित होंगे

सरोज स्मृति

’सरोज स्मृति’ हिंदी में अपने ढंग का एकमात्र शोक काव्य है। कवि निराला द्वारा अपनी पुत्री की मृत्यु पर लिखी इस कविता में करुणा भाव की प्रधानता है। विराग भाव के बीच नीति, शृंगार और कभी-कभी व्यंग्य और हास्यमूलक प्रसंगों को पिरोना इसकी अनोखी विशिष्टता है। यह अपने ढंग की अकेली कविता है जिसमें निराला का अपना जीवन भी आ गया है।
’सरोज स्मृति’ कवि ने अपनी प्रिय पुत्री सरोज के बाल्यकाल से लेकर मृत्यु तक की घटनाओं को बङे प्रभावशाली ढंग से अंकित किया है। इसमें कवि ने सरोज की बाल्यावस्था, एवं तरुणाई के बङे ही मार्मिक और पवित्र चित्र अंकित किए हैं। इस कविता में एक भाग्यहीन पिता का संघर्ष, समाज से उसके संबंध, पुत्री के प्रति बहुत कुछ न कर पाने का अकर्मण्यता बोध भी प्रकट हुआ है। इस कविता के माध्यम से निराला का जीवन-संघर्ष भी प्रकट हुआ है।

Net Jrf Hindi Pdf Notes

वे कहते हैं –

’दुख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूँ आज, जो नहीं कही।’
इन पंक्तियों में कवि की वेदना व जीवन संघर्ष साफ झलकता है।
देखा विवाह आमूल नवल,
तुझ पर शुभ पङा कलश का जल।
देखती मुझे तू हँसी मंद,
होठों में बिजली फँसी स्पंद
उर में भर झूली छबि सुंदर
प्रिय की अशब्द शृंगार-मुखर
तू खुली एक-उच्छ्वास-संग,
विश्वास-स्तब्ध बँध अंग-अंग
नत नयनों से आलोक उतर
काँपा अधरों पर थर-थर-थर।
देखा मैंने, वह मूर्ति-धीति
मेरे वसंत की प्रथम गीति –

शृंगार, रहा जो निराकार,
रह कविता में उच्छ्वसित-धार
गाया स्वर्गीया-प्रिया-संग-
भरता प्राणों में राग-रंग,
रति-रूप प्राप्त कर रहा वही,
आकाश बदल कर बना माही।
हो गया ब्याह, आत्मीय स्वजन,
कोई थे नहीं, न आमंत्रण
था भेजा गया, विवाह-राग
भर रहा न घर निशि-दिवस जाग,
प्रिय मौन एक संगीत भरा
नव जीवन के स्वर पर उतरा।

माँ की कुल निराश मैंने दी,
पुष्प-सेज तेरी स्वयं रची,
सोचा मन में, ’’वह शकुंतला,
पर पाठ अन्य यह, अन्य कला।’’
कुछ दिन रह गृह तू फिर समोद,
बैठी नानी की स्नेह-गोद।
मामा-मामी का रहा प्यार,
भर जल्द धरा को ज्यों अपार,
वे ही सुख-दुख में रहे न्यस्त,
तेरे हित सदा समस्त, व्यस्त,
वह लता वहीं की, जहाँ कली
तू खिली, स्नेह से हिली, पली,
अंत भी उसी गोद में शरण
ली, मूँदे दृग वर महामरण!

मुझ भाग्यहीन की तू संबल
युग वर्ष बाद जब हुई विकल,
दुख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूँ आज, जो नहीं कही!
हो इसी कर्म पर वज्रपाल
यदि धर्म, रहे नत सदा माथ
इस पथ पर, मेरे कार्य सकल
हों भ्रष्ट शीत के-से शतदल!
कन्ये, गत कर्मों का अर्पण
कर, करता मैं तेरा तर्पण!

भावार्थ: –

कवि ’निराला’ की बेटी का नाम सरोज है जिसकी असामयिक मृत्यु हो गई थी। कवि दुखी होकर उसके विवाह के क्षणों को याद करते हुए कहते हैं कि ’’तेरा विवाह बिल्कुल नए रूप में मैंने देखा था। तुझ पर कलश का शुभ्र जल गिराया जा रहा था, तू उस समय मुझे देखती हुई मंद-मंद हँस रही थी। तेरे होठों पर बिजली जैसा कंपन था। तेरे हृदय में प्रियतम की सुंदर छवि झूल रही थी जिसे अभिव्यक्त करना तेरे लिए संभव नहीं था लेकिन वह तेरे शृंगार के माध्यम से अभिव्यक्त हो रहा था। तेरे झुके हुए नेत्रों से प्रकाश फैल रहा था और तेरे होंठ काँप रहे थे। शायद तू कुछ कहना चाहती थी या माँ का अभाव तुझे दर्द दे रहा होगा। तुझे देखकर मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे जीवन के सुखद क्षणों का प्रथम गीत तो तू ही थी।’’
’निराला’ को पुत्री के विवाह के समय उसका शृंगार उनकी पत्नी के निराकार स्वरूप का स्मरण करा रहा था। पत्नी का वह शृंगार ही कविता में अभिव्यक्त हो रहा है। कविता का यह रस मेरे प्राणों में प्रिया के साथ बिताए गए राग-रंगों को भर रहा है। वह अत्यंत सुन्दर रूप मानों आकाश अर्थात् स्वर्गलोक से उतरकर पुत्री के रूप में पृथ्वी पर उतर आया हो। पुत्री का विवाह सम्पन्न हो गया था। कोई आत्मीयजन भी नहीं था क्योंकि किसी को निमंत्रण ही नहीं दिया गया था।

घर में दिन-रात गाए जाने वाले विवाह के गीत भी नहीं गाए गए थे। पुत्री के विवाह की चहल-पहल में कोई दिन-रात नहीं जागा। अत्यंत साधारण तरीके से उसका विवाह सम्पन्न हो गया। एक प्यारा-सा शांत वातावरण था और इस मौन में ही एक संगीत लहरी थी जो एक नवयुगल के नवजीवन में प्रवेश के लिए आवश्यक थी।
कवि अपनी स्वर्गीय पुत्री सरोज को संबोधित करते हुए कह रहे हैं कि तेरी माँ के अभाव में माता द्वारा दी जाने वाली शिक्षा भी मैंने ही दी थी। विवाहोपरांत तेरी पुष्प शैया भी स्वयं मैंने ही सजाई थी। कवि के मन में ख्याल आया कि जिस प्रकार कण्व ऋषि की पुत्री शंकुतला माँ विहीन थी इसी प्रकार मेरी पुत्री सरोज है।

किन्तु उस घटना और इस घटना की स्थिति में अंतर है। शंकुतला की माता उसे स्वयं छोङकर गई थी किन्तु सरोज की माँ को असमय ही मौत ने अपने आगोश में ले लिया था। विवाह के कुछ दिन बाद ही तू खुशी के साथ नानी की प्रेममयी गोद पाने के लिए ननिहाल चली गई थी। वहाँ पर मामा-मामी ने तुझ पर प्यार रूपी जल की अपार वर्षा की थी। तेरे ननिहाल वाले हमेशा तेरे सुख दुःख में निहित रहे। वे हमेशा तेरे हित साधन में लगे रहे। तू वहीं कली के रूप में खिली, स्नेह से वहाँ पली, वहीं की लता बनी और अंतिम समय में तूने मृत्यु का वरण भी वहीं किया था।

कवि निराला भावुक होकर कहते हैं कि हे पुत्री! तू मेरे जैसे भाग्यहीन पिता का एकमात्र सहारा थी। दुख मेरे जीवन की कथा रही है जिसे मैंने अब तक किसी से नहीं कहा, उसे अब आज क्या कहूँ। मुझ पर कितने ही वज्रपात हो अर्थात् कितनी ही भयानक विपत्तियाँ आए, चाहे मेरे समस्त कर्म उसी प्रकार भ्रष्ट हो जाए जैसे सर्दी की अधिकता के कारण कमल पुष्प नष्ट हो जाते हैं लेकिन यदि धर्म मेरे साथ रहा तो मैं विपदाओं को मस्तकक झुकाकर सहज भाव से स्वीकार कर लूँगा। मैं अपने रास्ते से नहीं हटूँगा। कवि अंत में कहता है कि बेटी मैं अपने बीते हुए समस्त शुभ कर्मों को तूझे अर्पित करते हुए तेरा तर्पण करता हूँ अर्थात् मैं प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि मेरे द्वारा किए शुभकर्मों का फल तुझे मिल जाए।

विशेष: –
⇒ कविता के माध्यम से निराला का जीवन संघर्ष प्रस्तुत हुआ है।
⇒ ’’दुख ही जीवन की कथा रही,
क्या कहूँ आज, जो नहीं कही।’’
पंक्तियों में कवि की वेदना साफ झलकती है।

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’सरोज स्मृति के महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर –

1. ’सरोज-स्मृति’ नामक संस्मरण गीत के रचनाकार है –
(अ) जयशंकर प्रसाद
(ब) सूर्यकांत त्रिपाठी ’निराला’ Ω
(स) सुमित्रानंदन पंत
(द) रामनरेश त्रिपाठी
2. कवि किसका विवाह देखता है –
(अ) स्वयं का (ब) शंकुतला का
(स) सरोज का Ω (द) पुत्र का
3. कवि के प्रथम बसंत की गीति कौन है –
(अ) सरोज Ω (ब) मनोहरा
(स) स्मृति (द) अतीत गौरव
4. सोचा मन में वह ’शंकुतला’। कवि अपनी बेटी सरोज को शंकुतला नाम ही क्यों देता है, क्योंकि –
(अ) वह अपने मामा के यहाँ पली बढ़ी
(ब) ननिहाल में पोषण हुआ
(स) उसका अंत भी वहीं हुआ
(द) उक्त सभी Ω
5. ’मूँदे दृग वर महामरण’ रेखांकित पद का अर्थ है –
(अ) उत्कृष्ट मौत (ब) निकृष्ट मृत्यु
(स) अन्तिम सत्य Ω (द) जीवन संध्या
6. ’’दुख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूँ आज, जो नहीं कही।’’ पंक्तियों में निराला के किस व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं –
(अ) भाग्यहीन (ब) अर्थहीन
(स) जिजीविषा हीन (द) जीवन संघर्ष Ω
7. निराला अपने हाथों से किसका तर्पण करना चाहते हैं –
(अ) अपनी पत्नी का
(ब) अपने माता-पिता का
(स) सरोज का Ω
(द) अपने नाना का
8. ’सरोज स्मृति’ कविता है –
(अ) काव्य गीत (ब) शोक गीत Ω
(स) करुण गीत (द) विरह गीत
9. कवि सरोज की स्मृति को अपने हृदय में किन रूपों में संजोता है –
(अ) उसकी मंद हँसी
(ब) हृदय में झूलती उसकी छवि
(स) एक खुला उच्छ्वास
(द) उक्त सभी Ω
10. ’’देखा मैंने वह मूर्ति-धीति, मेरे वसंत की प्रथम गीति।’’
कवि ने मूर्ति धीति, शब्द किसके लिए प्रयुक्त किया है –
(अ) कवि के जैसी चेहरे वाली के लिए
(ब) प्रतिमूर्ति के लिए
(स) हमारी कल्पना के अनुरूप
(द) सरोज के लिए Ω
11. सरोज का शैशव कहाँ बीता –
(अ) अपने दादा-दादी के पास
(ब) अपने ननिहाल में Ω
(स) अपने पिता के पास
(द) अपनी बुआ के पास
12. कवि निराला स्वयं को भाग्यहीन क्यों कहते हैं –
(अ) अपने पास कुछ नहीं होने से
(ब) सरोज को खो देने से
(स) जिजीविषा के लिए भटकने से
(द) संघर्षमय जीवन होने से Ω
13. ’’वह लता वहाँ की जहाँ कली, तू खिली, स्नेह से हिली पली।’’
कवि ने ऐसा क्यों कहा –
(अ) सरोज के अपने माँ के पास रहने के कारण
(ब) सरोज के अपने ननिहाल में रहने के कारण Ω
(स) सरोज का अपने दादा के पास रहने के कारण
(द) सरोज का अपने गुरु के पास रहने के कारण

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Comments

  1. Shalini gautam says

    07/04/2022 at 10:37 PM

    This is a very nice poem and knowledge based

    Reply
  2. Chhotu Ram says

    22/06/2022 at 11:05 PM

    Very nice, excellent poem unbelievable poem.

    Reply
  3. Shalu tripathi says

    04/08/2022 at 9:30 PM

    Such a emotional and meaningful poem proud to nirala ji… Ur so inspiring for the Indians..!

    Reply

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