कवित्त छंद – परिभाषा, भेद , उदाहरण – Kavitt Chhand in Hindi

आज के आर्टिकल में हम काव्यशास्त्र के अंतर्गत कवित्त छंद (Kavitt Chhand) को विस्तार से पढेंगे ,इससे जुड़ें महत्त्वपूर्ण उदाहरणों को भी पढेंगे।

कवित्त छंद – Kavitt Chhand

कवित्त छंद

कवित्त छंद की परिभाषा – Kavitt Chhand ki Paribhasha

साधारण रूप में मुक्तक दण्डकों को ही जो दण्ड की तरह बहुत लम्बे छन्द होते हैं, उन्हें ‘कवित्त’ कहते है। यह भी वर्णिक छन्दों की श्रेणी में आता है, लेकिन इसमें गणों का नियम लागू नहीं होता। इस वर्णिक छंद के प्रत्येक चरण में 16 और 15 के विराम से 31 वर्ण होते है। प्रत्येक चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है।

कवित्त छंद के लक्षण – Kavitt chhand ke Lakshan

  • यह दण्डक श्रेणी का वर्णिक सम छंद होता है।
  • इसके प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते हैं।
  • इसमें 16,15 पर यति तथा अंतिम वर्ण गुरु (ऽऽ) होता है।
  • इसे ’मनहरण’ या घनाक्षरी भी कहते हैं।
  • इसमें 8, 8, 8, 7 वर्णों पर यति रखने का विधान होता है।
  • इसमें लघु-गुरु आदि के नियम लागू नहीं होते हैं, केवल वर्णों की संख्या को गिना जाता है।

कवित्त छंद के उदाहरण- Paribhasha or Udahran

हरित हरित हार, हेरत हियो हेरात – 16 वर्ण
हरि हाँ हरिन नैनी, हरि न कहूँ लहाँ। – 15 वर्ण
बनमाली ब्रज पर, बरसत बनमाली,
बनमाली दूर दुख, केशव कैसे सहौं।
हृदय कमल नैन, देखि कै कमल नैन,
होहुँगी कमल नैनी, और हौं कहा कहौं।
आप घने घनस्याम, घन ही ते होते घन,
सावन के द्यौंस धन, स्या बिनु कौन रहौं।

पात भरी सहरी सकल सुत बारै-बारै,
केवट की जाति कछु वेद न पढ़ाइहौं।
सब परिवार मेरो याहि लागि है राजाजू,
दीन वित्तहीन कैसे दूसरी गढ़ाइहौं।।

डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगुला सौहें तन छबि भारी दै।
पवन झुलावै केकी कीर बतरावे ’देव’
कोकिल हलावे हुलसावे कर तारी दै।
पूरित पराग सो उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर मारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।

कवित्त छंद के अन्य उदाहरण

बिरह बिथा की कथा अकथ अथाह महा
कहत बनै न जौ प्रवीन सुकवीनि सौं।
कहै ’रत्नाकर’ बुझावन लगै ज्यों कान्ह
ऊधौ कौं कहन हेतु व्रज जुव तीनि सौं।
गहबरि आयौ गरौ भभरि अचानक त्यौं
प्रेम पर्यौ चपल चुचाइ पुतरीनि सौं।
नैकु कही बैननि अनेक कही नैननि सौं
रही सही सोऊ कहि दीनी हिचकीनि सौं।

इन्द्र जिमि जंभ पर, बाडव सुअंभ पर
रावन सदंभ पर रघुकुल राज है।
पौन वारिवाह पर संभु रतिनाह पर
ज्यों सहस्त्र बाहु पर राम द्विजराज है।
दावा दु्रमदंड पर चीता मृग झुंड पर
भूषण वितुण्ड पर जैसे मृगराज है।
तेज तम अंस पर कान्ह जिमि कंस पर
त्यों मलेच्छ वंस पर सेर सिवराज है।

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